नोटबंदी के दौरान गुजरात के दौ सहकारिता बैंकों में किसके पैसे जमा हुए?
अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में नोटबंदी के दौरान सबसे अधिक पैसा जमा हुआ है। 8 नवंबर को नोटबंदी लागू हुई थी और 14 नवंबर को एलान हुआ था कि सहकारिता बैंकों में पैसा नहीं बदला जाएगा। मगर इन पांच दिनों में इस बैंक में 745 करोड़ रुपये जमा हुए। इतने पैसे गिनने के लिए कर्मचारी और क्या व्यवस्था थी, यह तो बैंक के भीतर जाकर ही पता चलेगा या फिर बैंक कर्मी ही बता सकतें हैं कि इतना पैसा गिनने में कितना दिन लगा होगा।
बैंक की वेबसाइट के अनुसार अमित शाह कई साल से इसके अध्यक्ष हैं और आज भी हैं। ऐसा मनीलाइफ, इकोनोमिक टाइम्स और न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है। अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक (ADCB) के अलावा राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में 693 करोड़ जमा हुआ है। इसके चेयरमैन जयेशभाई विट्ठलभाई रडाडिया हैं जो इस वक्त गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। जबकि इसी दौरान गुजरात राज्य सहकारिता बैंक में मात्र 1.1 करोड़ ही जमा हुआ।
मुंबई के मनोरंजन ए रॉय ने आर टी आई से ये जानकारी प्राप्त की है। बीजेपी नेताओं की अध्यक्षता वाले सहकारिता बैंकों में क्या हुआ कि पांच दिन में कुल 1300 करोड़ जमा हो गए। अच्छा होता कि इतने ही दिनों का रिकार्ड किसी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का होता तो पता चल जाता कि वहां कितना जमा हुआ और सहकारिता बैंक में कितना जमा हुआ।
टाइम्स आफ इंडिया में एयरटेल के सुनिल भारती मित्तल का इंटरव्यू छपा है।
सुनील मित्तल का आखिरी जवाब पढ़िये जब उनसे पूछा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी जब आए थे तब उन्हों प्रो बिजनेस देखा जा रहा था। बहुत से लोग निजी तौर पर इस राय को नहीं मानते हैं तो जवाब में सुनील मित्तल कहते हैं कि इसी बात को लेकर तो भ्रम है कि मोदी प्रो बिजनेसमैन हैं या प्रो बिजनेस है। इशारा यह है कि चंद लोगों के ही समर्थक हैं या पूरे बिजनेस के लिए सर्मपित हैं। इसके बाद सुनीत मित्तल बताने लगते हैं कि कैसे मोदी प्रो बिजनेस ही हैं।
सुनील मित्तल का आखिरी जवाब पढ़िये जब उनसे पूछा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी जब आए थे तब उन्हों प्रो बिजनेस देखा जा रहा था। बहुत से लोग निजी तौर पर इस राय को नहीं मानते हैं तो जवाब में सुनील मित्तल कहते हैं कि इसी बात को लेकर तो भ्रम है कि मोदी प्रो बिजनेसमैन हैं या प्रो बिजनेस है। इशारा यह है कि चंद लोगों के ही समर्थक हैं या पूरे बिजनेस के लिए सर्मपित हैं। इसके बाद सुनीत मित्तल बताने लगते हैं कि कैसे मोदी प्रो बिजनेस ही हैं।
मित्तल ने कहा है कि दो साल से दुनिया की अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई है। मेरा सवाल है कि फिर भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी क्यों नहीं आ सकी? इंडिया टुडे के अंशुमान तिवारी ने अपने कालम अर्थात में इसे लेकर पड़ताल की है और बताया है कि मोदी के विदेश दौरों के बाद भी निर्यात में कोई सुधार नहीं हैं। गिरावट ही गिरावट है इसलिए उनके विदेश दौरे की तथ्यात्मक कामयाबी को नहीं दिखाया जाता है सिर्फ तस्वीरों को ही बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाता है।
बहरहाल सुनील मित्तल ने ने कहा है कि नौकरियां नहीं हैं। उनकी बातों से लग रहा है कि नौकरी की स्थिति वाकई बहुत भयावह है। पिछले एक साल से मैं अपने इस फेसबुक पेज पर आर्थिक जगत की खबरों का हिन्दी में सार पेश कर रहा हूं जिनमें इन्हीं बातों के लक्षण शुरू से दिखाई दे रहे थे।
हिन्दू बिजनेस लाइन में करदाताओं की संख्या को लेकर आरती कृष्णन का एक विश्लेषण छपा है। आरती का कहना है कि अक्सर कहा जाता है कि भारत में कर देने की क्षमता वाले लोगों की संख्या वास्तव में रिटर्न फाइल करने वालों से ज़्यादा है। मगर यह सही नहीं है। वित्त वर्ष 18 में 6.84 व्यक्तियों, संयुक्त हिन्दू परिवार और बिजनेस ने आयकर रिटर्न फाइल किया। इनमें से छह करोड़ तो व्यक्तिगत करदाता था। यानी हमारे आपके जैसे। भारत की आबादी के हिसाब से मात्र 4.5 प्रतिशत आयकर दाता हु्ए।
आरती का कहना है कि हमें इस तरह से हिसाब नहीं करना चाहिए। यह देखना चाहिए कि कर देने की क्षमता रखने वालों की संख्या कितनी है भारत की आधी आबादी ही 20 से 59 साल के बीच आती है। इसका आधा ही पूरे साल किसी न किसी रुप से काम पाता है। हमारी आबादी 132 करोड़ है, इस हिसाब से 33 करोड़ लोग ही काम में लगे हैं। जो नियमित रुप से सैलरी कमाते हैं या मज़दूरी पाते हैं। जिनकी आयकर देने की क्षमता मानी जा सकती है। इसमें से भी एक बड़े हिस्से को कर देयता की सीमा से बाहर रखा जाता है।
नई जनगणना के अनुसार काम करने वालों की आबादी का आधा हिस्सा खेती में है। इस हिबास से आप 33 करोड़ में से 16.5 करोड़ बाहर कर दीजिए जो कर देने की स्थिति में नहीं हैं। बेहद मामूली हिस्सा इस सेक्टर का कर दे सकता है। इस लिहाज़ से कर देने की क्षमता वाले लोगों की संख्या 16.5 करोड़ ही होती है। 2016 में 4.3 करोड़ लोगों (व्यक्तियों) ने आयकर रिटर्न फाइल किया है। यानी एक चौथाई टैक्स दे रहे हैं।
ध्यान रखना होगा कि कमाई भी काफी कम है। बहुत कम की कमाई टैक्स के ऊपरी स्लैब तक पहुंच पाती है। 2016 के नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार 87 प्रतिशत परिवार 20,000 महीना ही कमा पाता है। यानी साल का 2 लाख 40 हज़ार। ढाई लाख की आमदनी तक को कोई कर नहीं लगता है। इसका मतलब यह हुआ कि 25 करोड़ भारतीयों में सिर्फ 13 प्रतिशत ही टैक्स देने की सीमा में आते हैं। कंपनियों का भी यही मामला है। 5.3 लाख कंपनियां ढाई लाख से कम कमाई दिखाती हैं या उनकी कमाई कम होती है।
ऐसा नहीं है कि आयकर विभाग ने हाथ पांव नहीं मारे हैं। तीन साल से कर चोरों की तलाशी हो रही है मगर अभी तक छोटी मछलियां ही हाथ लगी हैं। आप आयकर विभाग वालों से पूछिए। उन्होंने क्या क्या नहीं किया। इसी का नतीजा था कि 3.79 करोड़ आयकर दाता से बढ़कर 6.84 करोड़ आयकर दाता हो गए मगर प्रत्यक्ष कर संग्रह में 55 फीसदी की ही वृद्धि हुई। अनिता लिखती हैं कि जितने लोगों ने आयकर रिटर्न फाइल किया है उनमें से एक चौथाई ने कोई कर जमा नहीं किया है।
आर्थिक जगत की खबरों को समझिए। मोदी मोदी करते रहिएगा, उससे दिक्कत नहीं है। हिन्दी के पाठकों को परिश्रम कर आर्थिक ख़बरों को समझना ही होगा।
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