कांग्रेस जिस शिवराज सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के भरोसे सत्ता का वनवास खत्म करने का यकीन रखती है ..उस राह में अभी भी कई रोड़े हैं.. कांग्रेस न तो शिवराज के मुकाबले कोई चेहरा चुनाव में सामने रख पाई है और ना ही कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक है.. क्योंकि जिस कांग्रेस में अभी कमलनाथ की टीम सामने नहीं आई वहां टिकट चयन से लेकर उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रचार अभियान और उसमें ज्योतिरादित्य की भूमिका बहुत मायने रखती है.. ज्योतिरादित्य को कमलनाथ ने जब अपने पीछे चलने को मजबूर किया है.. तब सिंधिया के लिए भी अपनी पुरानी भूमिका में नई लाइन पर आगे बढ़कर पहले कांग्रेस को बहुमत दिलाना और फिर पार्टी के अंदर अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करना बहुत बड़ी चुनौती मानी जा रही है.. जिस कांग्रेस का लगभग 35 परसेंट अपना वोट बैंक अभी भी उसकी ताकत बना हुआ है आखिर वो पिछले तीन चुनावों में भाजपा को मात क्यों नहीं दे पाई.. क्या 8 से 10% वोट बैंक का अंतर वो सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के भरोसे पूरा करना चाहती है या उसका अपना कार्यकर्ता, बूथ प्रबंधन और इलेक्शन मैनेजमेंट फिर कमजोर कड़ी साबित होगा.. जहां तक बात चुनाव प्रचार हअभियान की जिम्मेदारी निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की है, उन्होंने जिस तरह अपने संसदीय क्षेत्र गुना-शिवपुरी और प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल में अपनी लोकप्रियता साबित की है क्या वो पूरे प्रदेश में नजर आएगी, तो आखिर कैसे, क्यों और कब.. इसमें कोई दो राय नहीं कि सिंधिया दूसरे नेताओं के मुकाबले प्रेस कॉन्फ्रेंस में टू द पॉइंट बात कर एक परफेक्ट लीडर की छाप छोड़ते हैं .. और जनता के बीच मजमा लगाने और भीड़ जुटाने में सफल ही नहीं होते, बल्कि तालियां भी खूब बटोर लेते हैं, लेकिन जुटी और जुटाई गई भीड़ वोट में तब्दील होगी तो कैसे.. क्योंकि क्षेत्र विशेष और गणेश परिक्रमा करने वाले गिने-चुने समर्थकों को छोड़ दिया जाए तो पार्टी के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं और आम जनता से ना तो उनका संवाद बरकरार नजर आता है और ना ही वो जाने पहचाने लोगों को नाम से पहचानते हैं, चाहे फिर वो कांग्रेस और मीडिया से ही क्यों ना जुड़ा हो.. ये कहना गलत नहीं होगा कि उपलब्धता और स्पष्टता का अभाव ही नहीं, बल्कि संवाद, समन्वय और सहयोग की अपेक्षा.. सिंधिया के लिए सियासत में समाधान कम समस्या साबित हो रही है.. एक ओर मुख्यमंत्री होकर शिवराज तक आसानी से पहुंचा जा सकता है तो उनकी जैसी दरियादिली भी दूसरे नेताओं में नजर नहीं आती.. सिंधिया को संवाद और समन्वय के मामले में शिवराज से सीख नहीं लेना तो कोई बात नहीं, वो दिग्विजय सिंह से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं.. समय के पाबंद सिंधिया मध्यप्रदेश के जीवंत-ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नजर रखते और धमाकेदार एंट्री के साथ सामने आते हैं .. लेकिन सिंधिया तक एरो गैरों का पहुंचना तो बहुत दूर की बात उनके शुभचिंतक भी अकेले में उनसे मुलाकात नहीं कर पाते ..तो यह एकजुटता का दावा करने वाली कांग्रेस के अंदर उस समानांतर व्यवस्था के तहत ही संभव है, जो उनके व्यक्तिगत तौर पर निकट यानी गिने चुने लोगों के मार्फत.. प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में तैनात जिम्मेदार पदाधिकारी भी सिंधिया तक पहुंचने में मददगार सिद्ध नहीं हो पाते, जो खुद अपने हाथ खड़े कर देते हैं.. ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है केंद्रीय मंत्री रह चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया क्या कांग्रेस के अंदर कमलनाथ के मुकाबले अपनी लाइन बड़ी कर शिवराज का विकल्प खुद को साबित कर पाएंगे तो कैसे.. वह भी तब जब कांग्रेस के अंदर कई स्पीड ब्रेकर तो भाजपा तक पहुंचने से पहले कई बेरीकेट्स साफ नजर आ रहे हैं
—
—
बॉक्स-1
//कांग्रेस के लिए जरूरी या मजबूरी ज्योतिरादित्य..//
कांग्रेस की प्रदेश चुनाव प्रचार अभियान समिति की तीसरी बैठक लेने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया एक बार फिर भोपाल में … उम्मीद की जाना चाहिए कि कांग्रेस का एक्शन प्लान और सिंधिया का रोडमैप सामने आ जाएगा, लेकिन इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की गैरमौजूदगी में उनका ऐलान सवालों के घेरे में आ सकता है.. जो भी हो फिलहाल मिशन 2018 विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के अंदर कमलनाथ के बाद ज्योतिरादित्य नंबर दो नेता के तौर पर सामने हैं.. इस जोड़ी पर पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी मुहर लगा चुका है, लेकिन यही वो पेंच है, जो नेतृत्वविहीन कांग्रेस के लिए संकट पैदा करता रहा है.. जिसे मजबूरी में कांग्रेस अपनी ताकत बताती है, फिर भी मंदसौर दौरे के दौरान राहुल गांधी की उस बात पर गौर किया जाए, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिंधिया युवा हैं, उनके पास समय है.. तो सवाल यहीं से खड़े होते हैं कि क्या कमलनाथ राष्ट्रीय नेतृत्व की पहली पसंद हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए दूसरे क्षत्रपों की तुलना में ज्योतिरादित्य इस चुनाव में बड़ा किरदार निभाने वाले हैं.. या खुद की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सिंधिया आगे बढ़ रहे हैं.. इस जोड़ी का अभी तक मैदान में मोर्चा नहीं खोलना सिर्फ चर्चा का विषय ही नहीं बना, बल्कि कांग्रेस की रणनीति पर भी सवाल खड़े करता है.. जो भी हो यदि कमलनाथ-सिंधिया के दावों पर यकीन किया जाए तो अंडरस्टेंडिंग मजबूत है, लेकिन ये तभी साबित होगा जब अपने दावे को दरकिनार रख दूसरे को मुख्यमंत्री बनाने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हुए दोनों नजर आएं.. फिलहाल ऐसा नजर नहीं आता है.. लेकिन बात आज ज्योतिरादित्य सिंधिया की करें तो कमलनाथ के मुकाबले उनकी राह में कांग्रेस के अंदर कई स्पीड ब्रेकर तो कई बैरिकेट्स के साथ भाजपा कड़ी चुनौती देती हुई देखी जा सकती है.. गुना, शिवपुरी, ग्वालियर, चंबल की राजनीति से आगे दिल्ली में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे ज्योतिरादित्य के लिए प्रदेश की राजनीति में स्वीकार्यता बनाने का ये दूसरा मौका होगा.. पिछले विधानसभा चुनाव में लगभग इसी भूमिका में रहते वो कोई कमाल नहीं दिखा पाए थे, लेकिन पिछले 1 साल में कांग्रेस के दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्योतिरादित्य ने अपनी लोकप्रियता साबित की है, चाहे फिर वो अटेर, मुंगावली, कोलारस उपचुनाव में कांग्रेस की जीत हो या फिर मंदसौर गोलीकांड और किसानों की आवाज को लेकर सत्याग्रह, उसके बाद से ही समय-समय पर मुख्यमंत्री को चिट्ठी और ट्वीटर से आगे निकलकर दलित, किसान, ओबीसी, युवा, महिला, हर वर्ग की नब्ज पर हाथ रखने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया.. शिवराज को सीधी चुनौती देकर खुद को उनके सामने अपने आप को खड़ा भी किया… बावजूद इसके उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनाया गया और ना ही सीएम इन वेटिंग के तौर पर ये चेहरा सामने आ पाया.. इसे कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से जोड़कर देखा जा सकता है.. यानी इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा से सीधे मुकाबले से पहले ज्योतिरादित्य अपनी पार्टी कांग्रेस के अंदर स्वीकार्यता नहीं बना पाए.. यानी पहली चोट उन अपनो ने दी जो उनकी अपनी पार्टी के नेता है ..प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया पहले ही सिंधिया जिस चेहरे की आवश्यकता जताते रहे उसे खारिज करवा चुके हैं.. ये बात मुंगावली-कोलारस उपचुनाव की है, लेकिन बाद में तब समझ में आई जब कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष बनकर भोपाल पहुंचे.. राहुल गांधी ने ये फैसला सोच-समझकर ही लिया होगा, क्योंकि प्रदेश की राजनीति में समन्वय की मुहिम भले ही दिग्विजय सिंह चला रहे हों, लेकिन उनके हस्तक्षेप ने सिंधिया की स्पीड पर रोक लगा दी.. क्योंकि उस दौर में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी चेहरे की वकालत करने वाले सिंधिया के सामने खड़े नजर आए तो पर्दे के पीछे दूसरे खिलाड़ी चाहे वो विवेक तनखा हों या कांतिलाल भूरिया भी दिग्विजय सिंह के पीछे ही माने जाते.. अपवादस्वरूप सिंधिया की खुली पैरवी करने वाले सत्यव्रत चतुर्वेदी को यदि याद किया जाए तो वो चुनावी राजनीति से संन्यास ले चुके हंै.. ऐसे में ज्योतिरादित्य को यदि मुख्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचना है और उन्हें अपनी लोकप्रियता पर भरोसा है तो पहली अघोषित लड़ाई पार्टी के अंदर लड़ना होगी, जिसमें अपने समर्थकों को टिकट दिलवाना ही नहीं, बल्कि उन्हें जिताना और उनकी संख्या इतनी जो प्रतिस्पर्धी दूसरे खेमे में एक साथ भी खड़े नजर आएं तो सिंधिया की लाइन बड़ी नजर आए, जिसे संभव बनाना उनके लिए आसान नहीं होगा.. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की महत्वाकांक्षाएं भी किसी से छुपी नहीं हैं.. कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह को भरोसे में लेकर करेले में अपनी पकड़ मजबूत बना ली है.. टिकट चयन में जब क्षत्रप अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने में सक्रिय होंगे तब सिंधिया का वीटो गौर करने लायक होगा.. यदि हाईकमान ने उनकी पसंद को तवज्जो नहीं दी तब देखना होगा, ज्योतिरादित्य किन-किन उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार करते हैं.. कांग्रेस का अपना इतिहास है, जिसमें टिकट मिलने और चुनाव परिणाम सामने आने से पहले और बाद विधायकों की आस्था बदलती रही है.. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य कि जिस जोड़ी पर राहुल गांधी को नाज है ..चुनाव परिणाम सामने आने के बाद शक्ति परीक्षण के दौर में जो सिंधिया को मुख्यमंत्री बनता हुआ नहीं देखना चाहेंगे वो और उनके समर्थक विधायक कमलनाथ के पाले में खड़े नजर आएं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी.. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष के रहते वो इन उम्मीदवारों के संपर्क में पहले ही आ चुके होंगे और दिग्विजय सिंह जैसे नेता इस किंगमेकर का एहसान बराबर करने का मौका हाथ से नहीं जाने देंगे ..तो 10 साल मुख्यमंत्री रहते दूसरे नेताओं कांतिलाल भूरिया, विवेक तनखा, अजय सिंह जैसे नेता भी सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ होंगे.. ये सभी जानते हैं.. ऐसे में ज्योतिरादित्य भले ही जोश-खरोश के साथ कांग्रेस को चुनाव जिताने में जुट जाएं, लेकिन प्रदेश में यदि संख्या बल उनके साथ पार्टी के अंदर खड़ा नजर नहीं आया तो राहुल गांधी भी बहुमत के चलते हस्तक्षेप करने की स्थिति में शायद नजर ना आएं और तब राहुल गांधी की वो बात सच हो जाए, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिंधिया के पास उम्र है और अवसर है.. शायद यही वजह है कि ज्योतिरादित्य नई भूमिका में अभी जनता के पास पहुंचने में जितनी दिलचस्पी लेना चाहिए थी, नहीं ले रहे हैं.. यदि वो कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कमलनाथ के साथ और अलग मंचों पर नजर भी आते हैं, तो इससे कुछ नहीं होगा, क्योंकि कांग्रेस के अंदर उम्मीदवार घोषित होने के बाद ज्योतिरादित्य की मांग और बखत दोनों बढ़ेगी, जो भाजपा के खिलाफ आक्रोश पैदा कर कांग्रेस को चुनाव जिता सकते हैं, लेकिन उनका अपना पुराना अनुभव उन्हें सोचने को जरूर मजबूर करेगा.. तो बड़ा सवाल ज्योतिराज सिंधिया कांग्रेस के लिए जरूरी या मजबूरी
//बॉक्स-2//
//भाजपा के लिए सिंधिया मुफीद या खतरे की घंटी//
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कांग्रेस के अंदर स्पीड ब्रेकर तो भाजपा में कई बैरिकेट्स मौजूद हैं.. चलिए मान लिया जाए कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस के संकटमोचक के तौर पर अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करके ही मानेंगे, लेकिन उनका मुकाबला उस भाजपा से है, जिसका मजबूत कैडर और कार्यकर्ता और जिसकी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हैं.. यही नहीं, राहुल गांधी के मुकाबले मोदी का तिलिस्म और शाह का प्रबंधन सड़क से सत्ता के बीच बड़ी दीवार के तौर पर खड़े नजर आएंगे.. बात यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि पर्दे के पीछे संघ, उसके प्रचारक और स्वयं सेवक कांग्रेस के लिए ऊंची दीवार साबित होने वाले हैं.. वो भी तब जब केंद्र से लेकर राज्य और नीचे नगरीय निकायों में भी कमल खिल रहा है, तब भाजपा इसे अपनी ताकत बनाकर मैदान में होगी, जिसे कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी के तौर पर कमजोरी मानकर चल रही है.. भाजपा के लिए दूसरे नेताओं के मुकाबले कांग्रेस में ज्योतिरादित्य बड़ी चुनौती माने जाते हैं.. जब कांग्रेस के संगठन पर कमलनाथ का कब्जा और सामने भाजपा का मजबूत कैडर है तब सिंधिया के लिए इस स्पीड ब्रेकर को पार करना तभी संभव होगा, जब वो सीधे मतदाताओं का भरोसा जीत पाएं.. माहौल बनाने में सिंधिया किसी अभिनेता से कम नहीं हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी पसंद भी करती है, लेकिन ये भीड़ शिवराज के खिलाफ कांग्रेस के समर्थन में वोट करेगी, ये कहना जल्दबाजी होगी.. क्योंकि यदि भाजपा की ताकत उसका कार्यकर्ता है, जो नाराज भले हों, लेकिन अंत में जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करता रहा है.. तो सरकार में रहते जिस हितग्राही को भाजपा अपना बड़ा वोट बैंक मानती है.. उसे शिवराज फैक्टर कहा जाता है, जिनके खाते में लगातार या तो बड़ी रकम जा रही या उसे किसी ना किसी योजना के तहत आर्थिक मदद और संसाधन मिले हैं.. इस मतदाता का मानस बदलना कांग्रेस और सिंधिया के लिए आसान नहीं होगा.. इसी के भरोसे भाजपा चौथी बार चुनाव जीतना चाहती है.. अपने हितग्राही के वोट बैंक के साथ पार्टी कार्यकर्ता के वोट चुनाव के दौरान पहले 4 घंटे में डलवाने की जो रणनीति बनाई गई है उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम संघ करने वाला है.. मतलब साफ है सिंधिया जनता के बीच कितने भी लोकप्रिय हों और भीड़ जुटाउ हों, लेकिन चुनावी गणित को प्रभावित करने वाला प्रबंधन खासतौर से बूथ मैनेजमेंट यदि कांग्रेस का फेल साबित हुआ तो फिर सिंधिया की मेहनत पर पानी फिरना भी तय है.. कांग्रेस के पास सिर्फ कार्यकर्ताओं का नहीं, बल्कि जिताऊ उम्मीदवारों का भी टोटा है तो भाजपा ने दूसरे दलों के लिए भी अपने द्वार खोल रखे हैं.. ज्योतिरादित्य को मालूम होना चाहिए कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मैदान में मोर्चा खोलने से पहले संगठन जो बिसात बिछा रहा है उसका अंतिम लक्ष्य बूथ मैनेजमेंट ही है, जिसके लिए यदि शिवराज जनआशीर्वाद यात्रा के जरिए माहौल बनाएंगे तो इस यात्रा में भीड़ जुटाने और नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा विधानसभा सम्मेलन के साथ संभागीय बैठकों का दौर शुरू कर चुकी होगी, जबकि सिंधिया को ये काम अपने दम पर करना होगा.. क्योंकि अभी तक कमलनाथ की टीम ही अस्तित्व में नहीं आई है.. इसके बाद ही काम का बंटवारा होना है.. प्रबंधन के इस दौर में ज्योतिरादित्य के बारे में कहा जाता है कि उनके कुर्ते में जेब नहीं होती, जबकि दूसरी ओर सरकार में रहते मैनेजमेंट में महारत हासिल कर चुकी भाजपा एक साथ कई मोर्चों पर पहले ही मजबूत प्रबंधन की ओर बढ़ रही है, चाहे वो पेज और पन्ना प्रमुख हो या फिर राष्ट्रीय पदाधिकारियों के दौरे और उनके लिए जुटाई जाने वाली भीड़.. ज्योतिरादित्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती शिवराज सिंह चौहान होंगे, जिनका चेहरा प्रदेश के हितग्राही बार-बार उनकी सभा में पहुंचकर अच्छी तरह पहचान चुके हैं तो शिवराज की ताकत उनकी विनम्रता तो उनकी पूंजी गरीब, दलित, पिछड़े, महिला, युवा, बुजुर्ग और युवाओं के लिए चलाई गई जनहितैषी योजनाओं से कमाई गई पुण्याई है, जिन पर कांग्रेस और सिंधिया आरोपों की बौछार कर सकते हैं और करते भी रहे हैं, लेकिन शिवराज अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर विरोधियों का चक्रव्यूह तोड़ते रहे हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि प्रचार अभियान के दौरान ज्योतिरादित्य के हमले शिवराज और भाजपा के लिए सिरदर्द बनते हैं तो किस हद तक..फिर भी बड़ा सवाल भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया मुफीद या फिर खतरे की घंटी साबित होंगे !
//भाजपा के लिए सिंधिया मुफीद या खतरे की घंटी//
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए कांग्रेस के अंदर स्पीड ब्रेकर तो भाजपा में कई बैरिकेट्स मौजूद हैं.. चलिए मान लिया जाए कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस के संकटमोचक के तौर पर अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करके ही मानेंगे, लेकिन उनका मुकाबला उस भाजपा से है, जिसका मजबूत कैडर और कार्यकर्ता और जिसकी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हैं.. यही नहीं, राहुल गांधी के मुकाबले मोदी का तिलिस्म और शाह का प्रबंधन सड़क से सत्ता के बीच बड़ी दीवार के तौर पर खड़े नजर आएंगे.. बात यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि पर्दे के पीछे संघ, उसके प्रचारक और स्वयं सेवक कांग्रेस के लिए ऊंची दीवार साबित होने वाले हैं.. वो भी तब जब केंद्र से लेकर राज्य और नीचे नगरीय निकायों में भी कमल खिल रहा है, तब भाजपा इसे अपनी ताकत बनाकर मैदान में होगी, जिसे कांग्रेस एंटी इनकंबेंसी के तौर पर कमजोरी मानकर चल रही है.. भाजपा के लिए दूसरे नेताओं के मुकाबले कांग्रेस में ज्योतिरादित्य बड़ी चुनौती माने जाते हैं.. जब कांग्रेस के संगठन पर कमलनाथ का कब्जा और सामने भाजपा का मजबूत कैडर है तब सिंधिया के लिए इस स्पीड ब्रेकर को पार करना तभी संभव होगा, जब वो सीधे मतदाताओं का भरोसा जीत पाएं.. माहौल बनाने में सिंधिया किसी अभिनेता से कम नहीं हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी पसंद भी करती है, लेकिन ये भीड़ शिवराज के खिलाफ कांग्रेस के समर्थन में वोट करेगी, ये कहना जल्दबाजी होगी.. क्योंकि यदि भाजपा की ताकत उसका कार्यकर्ता है, जो नाराज भले हों, लेकिन अंत में जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करता रहा है.. तो सरकार में रहते जिस हितग्राही को भाजपा अपना बड़ा वोट बैंक मानती है.. उसे शिवराज फैक्टर कहा जाता है, जिनके खाते में लगातार या तो बड़ी रकम जा रही या उसे किसी ना किसी योजना के तहत आर्थिक मदद और संसाधन मिले हैं.. इस मतदाता का मानस बदलना कांग्रेस और सिंधिया के लिए आसान नहीं होगा.. इसी के भरोसे भाजपा चौथी बार चुनाव जीतना चाहती है.. अपने हितग्राही के वोट बैंक के साथ पार्टी कार्यकर्ता के वोट चुनाव के दौरान पहले 4 घंटे में डलवाने की जो रणनीति बनाई गई है उसे अंजाम तक पहुंचाने का काम संघ करने वाला है.. मतलब साफ है सिंधिया जनता के बीच कितने भी लोकप्रिय हों और भीड़ जुटाउ हों, लेकिन चुनावी गणित को प्रभावित करने वाला प्रबंधन खासतौर से बूथ मैनेजमेंट यदि कांग्रेस का फेल साबित हुआ तो फिर सिंधिया की मेहनत पर पानी फिरना भी तय है.. कांग्रेस के पास सिर्फ कार्यकर्ताओं का नहीं, बल्कि जिताऊ उम्मीदवारों का भी टोटा है तो भाजपा ने दूसरे दलों के लिए भी अपने द्वार खोल रखे हैं.. ज्योतिरादित्य को मालूम होना चाहिए कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मैदान में मोर्चा खोलने से पहले संगठन जो बिसात बिछा रहा है उसका अंतिम लक्ष्य बूथ मैनेजमेंट ही है, जिसके लिए यदि शिवराज जनआशीर्वाद यात्रा के जरिए माहौल बनाएंगे तो इस यात्रा में भीड़ जुटाने और नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा विधानसभा सम्मेलन के साथ संभागीय बैठकों का दौर शुरू कर चुकी होगी, जबकि सिंधिया को ये काम अपने दम पर करना होगा.. क्योंकि अभी तक कमलनाथ की टीम ही अस्तित्व में नहीं आई है.. इसके बाद ही काम का बंटवारा होना है.. प्रबंधन के इस दौर में ज्योतिरादित्य के बारे में कहा जाता है कि उनके कुर्ते में जेब नहीं होती, जबकि दूसरी ओर सरकार में रहते मैनेजमेंट में महारत हासिल कर चुकी भाजपा एक साथ कई मोर्चों पर पहले ही मजबूत प्रबंधन की ओर बढ़ रही है, चाहे वो पेज और पन्ना प्रमुख हो या फिर राष्ट्रीय पदाधिकारियों के दौरे और उनके लिए जुटाई जाने वाली भीड़.. ज्योतिरादित्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती शिवराज सिंह चौहान होंगे, जिनका चेहरा प्रदेश के हितग्राही बार-बार उनकी सभा में पहुंचकर अच्छी तरह पहचान चुके हैं तो शिवराज की ताकत उनकी विनम्रता तो उनकी पूंजी गरीब, दलित, पिछड़े, महिला, युवा, बुजुर्ग और युवाओं के लिए चलाई गई जनहितैषी योजनाओं से कमाई गई पुण्याई है, जिन पर कांग्रेस और सिंधिया आरोपों की बौछार कर सकते हैं और करते भी रहे हैं, लेकिन शिवराज अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाकर विरोधियों का चक्रव्यूह तोड़ते रहे हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि प्रचार अभियान के दौरान ज्योतिरादित्य के हमले शिवराज और भाजपा के लिए सिरदर्द बनते हैं तो किस हद तक..फिर भी बड़ा सवाल भाजपा के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया मुफीद या फिर खतरे की घंटी साबित होंगे !
Source - पत्रकार राकेश अग्निहोत्री की रिपोर्ट - Failaan LIVE
Comments
Post a Comment
If You have any doubt, please let me know.