समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव 23 मई 2018 को कर्नाटक में मुख्यमंत्री श्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने बंगलूरू गए थे। उनके साथ इस यात्रा में प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री राजेन्द्र चौधरी भी थे। लखनऊ से बंगलूरू और बंगलूरू से लखनऊ के बीच हवाई यात्रा में अखिलेश जी ने राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर्यावरण, समाज में आ रहे नए परिवर्तनों पर भी चर्चा हुई।
यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि श्री अखिलेश यादव की चिंता के केन्द्र में हर समय किसान रहते हैं। उनकी स्थिति में बदलाव लाने को वे बेचैन हैं। समाजवादी सरकार में किसानों के हित की योजनाओं को विशेष प्राथमिकता दी गई थी। वे यह कहते हुए दुःखी नज़र आए कि किसानों के साथ इतना बड़ धोखा कभी नहीं हुआ, जितना भाजपा राज में हुआ है। गन्ना किसान बर्बाद है। मई महीने में लगभग आधा गन्ना खेतों में खड़ा है। गन्ना किसानों का बकाया बढ़ता जा रहा है। किसान ऐसे में खेत में अपना गन्ना न जलाये तो क्या करेगा? श्री अखिलेश यादव यह जानने को उत्सुक हैं कि आखिर भाजपा के पास किसानों की आय दुगनी करने की कौन सी योजना है? किसानों से किया गया वादा कब पूरा होगा?
श्री अखिलेश यादव मानते हैं कि भाजपा की नीतियों के चलते देश आर्थिक संकट के गंभीर दौर से गुजर रहा है। नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापार चैपट कर दिया है। रोजगार की स्थिति गंभीर है। बड़ी कम्पनियां रोजगार देने के बजाय कर्मचारियों की छंटनी कर रही है। डीजल-पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे है। भाजपा सरकार तेल कम्पनियों को लूट की छूट दिए हुए है। बेकारी और महंगाई में लगातार वृद्धि जारी है।
श्री अखिलेश यादव विकास के प्रबल पक्षधर हैं। वे मानते हैं कि भाजपा की विकास अवधारणा को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण का बुरा हाल है, गंगा और यमुना मर रही हैं, वन उजड़ रहे हैं, जानवरों को प्राकृतिक वातावरण नहीं मिल रहा है? हमें बदले में क्या मिल रहा हैं? मौसम में बदलाव से पारा चढ़ा हुआ है और लोगों की सांस प्रदूषण की वजह से घुट रही है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ से गम्भीर स्थितियां बन रही हैं और प्राकृतिक आपदाएं गम्भीर संकट का कारण बन सकती है।
बात पर्यावरण और विकास की चली तो तमिलनाडु के तूतीकोरन में हो रहे प्रदर्शन को भी प्रसंग आया। वहां प्रदूषण सम्बंधी चिंताओं को लेकर तांबा संयत्र को बंद करने की मांग को लेकर 100 दिनों से ज्यादा प्रदर्शन जारी हैं। पुलिस की गोलाबारी से दर्जन भर लोग मारे जा चुके है। श्री अखिलेश यादव ने कहा कि जनप्रतिरोध को कुचलने के लिए दमनचक्र चलाना अलोकतांत्रिक है।
पूर्व मुख्यमंत्री जी इस बात से क्षुब्ध दिखाई दिए कि मुद्दों से भटकाव की राजनीति देश को अंधकार की दिशा में ले जा रही है। आज देश के समक्ष रोटी-रोजी और शिक्षा-स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। नौजवानों में हताशा है। समाज के सभी वर्गों में निराशा है। देश में आंतरिक सुरक्षा और सीमा पर अशांति है। भाजपा इन सब पर ध्यान नहीं देती है। सŸाा की राजनीति के लिए जातियों के बीच नफरत और सांप्रदायिकता के जरिए सामाजिक सद्भाव की कीमत भारत को चुकानी पड़ रही है। भाजपा हर मोर्चे पर अपनी विफलता छुपाने की साज़िश करने में जुटी है।
पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का कहना है कि जनभावनाओं के अनुरूप ही राजनीतिक निर्णय होने चाहिए। इधर राजनीति सेवा का माध्यम न बनकर कुछ लोगों के लिए सŸाा लिप्सा का कारक बन गई है। अभी कर्नाटक में बहुमत न होने पर भी सŸाा से चिपके रहने का भाजपा ने जो प्रदर्शन किया वह लोकतंत्र का मजाक है। कर्नाटक में 23 मई 2018 को प्रगतिशील और सामाजिक सद्भाव की ताकतें लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक साथ एक मंच पर दिखाई दी। यह एक बड़ी राजनैतिक घटना है।
श्री यादव ने इधर राजनीति में सŸाा की भाषा में जो स्तरीय गिरावट आई है उसका उल्लेख करते हुए कहा कि पहले नीति पर चर्चा थी अब व्यक्तिगत लांछन, आरोप-प्रत्यारोप की भाषा दिखती है। स्वतंत्रता आंदोलन के जो मूल्य थे उनको तिरस्कृत किया जा रहा है। राजनीति में आचरण की भाषा बदल गई है।
यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि श्री अखिलेश यादव की चिंता के केन्द्र में हर समय किसान रहते हैं। उनकी स्थिति में बदलाव लाने को वे बेचैन हैं। समाजवादी सरकार में किसानों के हित की योजनाओं को विशेष प्राथमिकता दी गई थी। वे यह कहते हुए दुःखी नज़र आए कि किसानों के साथ इतना बड़ धोखा कभी नहीं हुआ, जितना भाजपा राज में हुआ है। गन्ना किसान बर्बाद है। मई महीने में लगभग आधा गन्ना खेतों में खड़ा है। गन्ना किसानों का बकाया बढ़ता जा रहा है। किसान ऐसे में खेत में अपना गन्ना न जलाये तो क्या करेगा? श्री अखिलेश यादव यह जानने को उत्सुक हैं कि आखिर भाजपा के पास किसानों की आय दुगनी करने की कौन सी योजना है? किसानों से किया गया वादा कब पूरा होगा?
श्री अखिलेश यादव मानते हैं कि भाजपा की नीतियों के चलते देश आर्थिक संकट के गंभीर दौर से गुजर रहा है। नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापार चैपट कर दिया है। रोजगार की स्थिति गंभीर है। बड़ी कम्पनियां रोजगार देने के बजाय कर्मचारियों की छंटनी कर रही है। डीजल-पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे है। भाजपा सरकार तेल कम्पनियों को लूट की छूट दिए हुए है। बेकारी और महंगाई में लगातार वृद्धि जारी है।
श्री अखिलेश यादव विकास के प्रबल पक्षधर हैं। वे मानते हैं कि भाजपा की विकास अवधारणा को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण का बुरा हाल है, गंगा और यमुना मर रही हैं, वन उजड़ रहे हैं, जानवरों को प्राकृतिक वातावरण नहीं मिल रहा है? हमें बदले में क्या मिल रहा हैं? मौसम में बदलाव से पारा चढ़ा हुआ है और लोगों की सांस प्रदूषण की वजह से घुट रही है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ से गम्भीर स्थितियां बन रही हैं और प्राकृतिक आपदाएं गम्भीर संकट का कारण बन सकती है।
बात पर्यावरण और विकास की चली तो तमिलनाडु के तूतीकोरन में हो रहे प्रदर्शन को भी प्रसंग आया। वहां प्रदूषण सम्बंधी चिंताओं को लेकर तांबा संयत्र को बंद करने की मांग को लेकर 100 दिनों से ज्यादा प्रदर्शन जारी हैं। पुलिस की गोलाबारी से दर्जन भर लोग मारे जा चुके है। श्री अखिलेश यादव ने कहा कि जनप्रतिरोध को कुचलने के लिए दमनचक्र चलाना अलोकतांत्रिक है।
पूर्व मुख्यमंत्री जी इस बात से क्षुब्ध दिखाई दिए कि मुद्दों से भटकाव की राजनीति देश को अंधकार की दिशा में ले जा रही है। आज देश के समक्ष रोटी-रोजी और शिक्षा-स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। नौजवानों में हताशा है। समाज के सभी वर्गों में निराशा है। देश में आंतरिक सुरक्षा और सीमा पर अशांति है। भाजपा इन सब पर ध्यान नहीं देती है। सŸाा की राजनीति के लिए जातियों के बीच नफरत और सांप्रदायिकता के जरिए सामाजिक सद्भाव की कीमत भारत को चुकानी पड़ रही है। भाजपा हर मोर्चे पर अपनी विफलता छुपाने की साज़िश करने में जुटी है।
पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव का कहना है कि जनभावनाओं के अनुरूप ही राजनीतिक निर्णय होने चाहिए। इधर राजनीति सेवा का माध्यम न बनकर कुछ लोगों के लिए सŸाा लिप्सा का कारक बन गई है। अभी कर्नाटक में बहुमत न होने पर भी सŸाा से चिपके रहने का भाजपा ने जो प्रदर्शन किया वह लोकतंत्र का मजाक है। कर्नाटक में 23 मई 2018 को प्रगतिशील और सामाजिक सद्भाव की ताकतें लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक साथ एक मंच पर दिखाई दी। यह एक बड़ी राजनैतिक घटना है।
श्री यादव ने इधर राजनीति में सŸाा की भाषा में जो स्तरीय गिरावट आई है उसका उल्लेख करते हुए कहा कि पहले नीति पर चर्चा थी अब व्यक्तिगत लांछन, आरोप-प्रत्यारोप की भाषा दिखती है। स्वतंत्रता आंदोलन के जो मूल्य थे उनको तिरस्कृत किया जा रहा है। राजनीति में आचरण की भाषा बदल गई है।
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