समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि इन दिनों गांवों में किसान अपनी फसल की मड़ाई-कटाई में व्यस्त हैं। उसके लिए ये बहुत काम के दिन हैं क्योंकि फसल की कमाई से ही उसका और उसके परिवार का जीवन चलता है। लेकिन इन्हीं दिनों भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्री गांवों में चैपाल और रात्रि विश्राम करने लगे है। इससे गांव के लोगों को बहुत परेशानी हो रही है।
मुख्यमंत्री जी और मंत्रियांे की चैपाल से गांवों के लोगों की दिनचर्या अस्तव्यस्त हो जा रही है। सरकारी अमले की भाग दौड़ से गांव के लोग अपने जरूरी काम भी नहीं निबटा पा रहे हैं। गांवों में विकास कार्य पहले से ही रूके हुए हैं। चैपाल लगने से कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं निकल रहे हैं। लोगों की शिकायतें कार्यवाही के बिना अनसुनी ही रह जाती हैं।
भाजपा सरकार ने चैपाल की बहुत चर्चा की है लेकिन उसके नतीजे सिफर हैं। उपमुख्यमंत्री जी की चैपाल में कई प्रमुख अधिकारी नदारद रहे। अब अधिकारी मंत्रियों की सुनने को भी तैयार नहीं तो अंदाजा लग जाता है कि इस सरकार के क्या हाल हैं। यह भी विडम्बना है कि मंत्रिमंडल के सहयोगी मंत्री और विधायक खुद अपनी ही सरकार और अपने मुख्यमंत्री की भी खिलाफत कर रहे हैं। एक उपमुख्यमंत्री ने तो अधिकारियों पर अपने कार्यकर्ताओं का ही उत्पीड़न करने का आरोप लगा दिया है। जब सरकार में उनकी नहीं सुनी जा रही तो आम जनता का क्या हाल होगा?
भाजपा को अगर किसानों की चिंता होती तो वे फसल कटाई के मौसम में गांवों में अव्यवस्था फैलाने का उपक्रम नहीं करते। गेंहॅू किसान को उसकी फसल का निर्धारित मूल्य भी नहीं मिल रहा है। लेकिन उसकी आय दुगना करने का झूठा आश्वासन दिया जा रहा है। गन्ना किसान का गन्ना खेतों में खड़ा है। उसका बकाया भुगतान नहीं हो रहा है। आलू किसान को भी बहुत भरोसा दिलाया गया था परन्तु उन्हें भी धोखा मिला है।
भाजपा ने गांव और किसान को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। किसान की कर्जमाफी नहीं हुई। वह आत्महत्या करने को मजबूर है। समाजवादी सरकार ने बजट की 75 प्रतिशत धनराशि गांव-किसान के लिए निर्धारित की थी। किसान को बीमा, मुफ्त सिंचाई, कर्जमाफी आदि तमाम सुविधाएं दी थीं। भाजपा के प्रति किसानों में गहरा आक्रोश है। किसानों का कहना है कि हमें सोने वाली सरकार नहीं चाहिए। सरकार जागरूक होनी चाहिए और काम करने वाली सरकार हो तभी उनकी समस्या का समाधान हो सकेगा।
मुख्यमंत्री जी और मंत्रियांे की चैपाल से गांवों के लोगों की दिनचर्या अस्तव्यस्त हो जा रही है। सरकारी अमले की भाग दौड़ से गांव के लोग अपने जरूरी काम भी नहीं निबटा पा रहे हैं। गांवों में विकास कार्य पहले से ही रूके हुए हैं। चैपाल लगने से कोई सकारात्मक परिणाम भी नहीं निकल रहे हैं। लोगों की शिकायतें कार्यवाही के बिना अनसुनी ही रह जाती हैं।
भाजपा सरकार ने चैपाल की बहुत चर्चा की है लेकिन उसके नतीजे सिफर हैं। उपमुख्यमंत्री जी की चैपाल में कई प्रमुख अधिकारी नदारद रहे। अब अधिकारी मंत्रियों की सुनने को भी तैयार नहीं तो अंदाजा लग जाता है कि इस सरकार के क्या हाल हैं। यह भी विडम्बना है कि मंत्रिमंडल के सहयोगी मंत्री और विधायक खुद अपनी ही सरकार और अपने मुख्यमंत्री की भी खिलाफत कर रहे हैं। एक उपमुख्यमंत्री ने तो अधिकारियों पर अपने कार्यकर्ताओं का ही उत्पीड़न करने का आरोप लगा दिया है। जब सरकार में उनकी नहीं सुनी जा रही तो आम जनता का क्या हाल होगा?
भाजपा को अगर किसानों की चिंता होती तो वे फसल कटाई के मौसम में गांवों में अव्यवस्था फैलाने का उपक्रम नहीं करते। गेंहॅू किसान को उसकी फसल का निर्धारित मूल्य भी नहीं मिल रहा है। लेकिन उसकी आय दुगना करने का झूठा आश्वासन दिया जा रहा है। गन्ना किसान का गन्ना खेतों में खड़ा है। उसका बकाया भुगतान नहीं हो रहा है। आलू किसान को भी बहुत भरोसा दिलाया गया था परन्तु उन्हें भी धोखा मिला है।
भाजपा ने गांव और किसान को बर्बाद करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। किसान की कर्जमाफी नहीं हुई। वह आत्महत्या करने को मजबूर है। समाजवादी सरकार ने बजट की 75 प्रतिशत धनराशि गांव-किसान के लिए निर्धारित की थी। किसान को बीमा, मुफ्त सिंचाई, कर्जमाफी आदि तमाम सुविधाएं दी थीं। भाजपा के प्रति किसानों में गहरा आक्रोश है। किसानों का कहना है कि हमें सोने वाली सरकार नहीं चाहिए। सरकार जागरूक होनी चाहिए और काम करने वाली सरकार हो तभी उनकी समस्या का समाधान हो सकेगा।
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